कर्मो का फल एक दिन जरूर मिलता है - Budhhist Story On LAW OF KARMA| Gautam Budhha Story

लेकिन जीस साल फसल अच्छी नहीं होती थी उस साल उसके परिवार को बड़ी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता था समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था और चंद्र अपनी जमीन पर पैदावार बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करता रहता था लेकिन चंद्र का एक पड़ोसी था | उसके पास कुछ गाय थी और गायों की कुछ बछड़े थे | उसका पड़ोसी पैसे से एक ग्वाला था अपनी गायों का दूध घर-घर बेचकर अपना गुर्जर बसर किया करता था | लेकिन उसकी एक समस्या थी वह गायों से दूध तो निकालना चाहता था |
लेकिन जब बात उनको खिलाने पिलाने की आई चारा डालने की आई | तो वह अपनी गायों को खुला छोड़ देता था क्योंकि उसे पता था कि गाय दूसरों के खेतों में जाकर अपना पेट भर के वापस इसके पास ही जाएंगे उसका काम सिर्फ गायों से दूध निकालना का था | उनकी देखभाल का जिम्मा वह लेना ही नहीं चाहता था | इसकी वजह से बहुत से लोग उसे ताने भी दे देते थे | क्योंकि गाय जब उनके खेतों में घुसती थी तो फसलों को बड़ा नुकसान होता था | उससे शिकायत करते कि जब दूध तुम निकलते हो तो उसको चारा तुम क्यों नहीं डालते हो क्यों हमारी फसल बर्बाद करने के लिए उसे खुला छोड़ देते हो |
इस पर वह कहता कि मैं गायों को पूरे दिन बांध के नहीं रख सकता | उनको खुला भी छोड़ना चाहिए गाय हमारी मां होती है और अगर तुम्हारी फसल खराब होती है | तो तुम अपनी फसलों की निगरानी रखो मैं कौन सा तुम्हारे खेत में छोड़ने के लिए जाता हूं और इस प्रकार वह अपनी बात को ऊपर रखते हुए दूसरों को नजरअंदाज कर देता था | एक दिन सुबह-सुबह जब चंद्र अपने खेतों में गया तो उसने पाया कि रात में गायों ने उसकी खेत की बहुत सी फसल खराब कर दी थी | उसे खेत में उसने गायों के पैरों के भी निशान देखें अब उसका यकीन पक्का हो गया था कि यह गाय उसके पड़ौसी की ही थी |
इसीलिए उसने सोचा कि वह अपने पड़ोसी को इसके शिकायत करेगा | लेकिन तभी उसे याद आया कि पड़ोसी को शिकायत करने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि वह उसकी बात को मानेगा ही नहीं और आखिरकार उसने फैसला किया कि वह रात में अपनी फसल की देखभाल वहीं खेत में अपने झोपड़ी में रहकर किया करेगा | उसने घर आकर अपनी पत्नी को अपने विचार बताया कि आज रात से मैं खेतों में ही सोया करूंगा | इस पर उसकी पत्नी ने भी कोई विरोध नहीं किया क्योंकि उसे पता था कि फसल अच्छी नहीं होगी तो फिर से अकाल के दिन आ जाएंगे | इस रात को चंद्र अपना खाना पानी खाकर अपनी लाठी को तैयार करके अपनी झोपड़ी की तरफ निकल पड़ता है |
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आज उसने फैसला कर लिया था कि आज से जब तक फसल नहीं कटेगी वह खेतों में अपनी फसल की देखभाल किया करेगा | लेकिन उसके मन में एक असमंजस की स्थिति भी थी उसने सोचा कि अगर गाय मेरी फसल खाने के लिए आई है तो मैं उसे लाठी से मार तो नहीं सकता बचपन से उसके संस्कारों से उसकी ऐसी मान्यता थी कि गाय उसकी मां सम्मान है और मां पर कोई लाठी कैसे चला सकता है | तो यहां पर असमंजस की स्थिति तो खड़ी होनी ही थी | इसीलिए उसने सोचा कि मैं गाय को लाठी मारने की बजाय वैसे ही हक दिया करूंगा गाय वैसे ही हकने से खेत से बाहर चली जाएगी | लेकिन रात में जब गाय फसल खाने के लिए उसके खेत में पहुंची तो उसे उसने खेत से बाहर हटाने का बहुत प्रयास किया | वह इस कोने से गाय को बाहर हांकने की कोशिश करता तो गाय उस कोने पर पहुंच जाती | लेकिन गाय उस खेत से बाहर निकालने का नाम ही नहीं ले रही थी |
इससे चंद्र की झल्ला हट बढ़ती जा रही थी | अपने गुस्से की वजह से वह खुद पे से काबू होता जा रहा था और आखिरकार वह घड़ी भी आ गई | जब वह अपने सारे संस्कार भूल गया और जब आदमी गुस्से से भर जाता है| तो उसका विवेक उसकी बुद्धिमानी उसकी सोच सब कुछ खत्म हो जाती है | ऐसा ही कुछ उसके साथ भी हुआ वह भूल चुका था कि उसके संस्कार क्या है और आखिरकार उसने लाठी उठाकर उस गाय को पीटना शुरू कर दिया | इससे वह गाय खेत से बाहर भागने की कोशिश करने लगी और बाहर भागने की कोशिश में वह गाय एक जगह पर पानी मे ली पटकर वहीं जमीन पर गिर गई और बदकिस्मती से जहां पर वह गाय गिरी थी वहीं पर जमीन पर एक बड़ा सा पत्थर भी पड़ा हुआ था | जिसके कारण उसे गाय की उसे पत्थर पर गिरने की वजह से वहीं पर मौत हो गई |
यह घटना होने के बाद चंद्र का गुस्सा एकदम ठंडा हो गया उसको एहसास हुआ कि उससे कितनी बड़ी गलती हो गई | उसे सोच ही नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिए कि उससे कोई पाप हो गया कि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था | इसी सोच विचार में वह पूरी रात सो नहीं पाया और उसके सामने वह तड़पती रही उसने उसका इलाज करने की भी कोशिश की लेकिन रात में ना तो उसे कोई चिकित्सा मिल सकता था और ना ही मदद के लिए आसपास कोई मौजूद था | क्योंकि उसका खेत गांव से बहुत दूर था वह पूरी रात उसे गाय के सामने बैठा रहा और उसे गाय को अपनी आंखों के सामने तड़पता हुआ देखता रहा | उसका दिल उसे बार-बार दिकाल रहा था वह खुद से कह रहा था कि तूने कितना बड़ा पाप कर दिया | इसका प्रायश्चित तू कैसे करेगा | जैसे ही सुबह हुई तो गांव के कुछ लोग उस तरफ आ पहुंचे और जब उन्होंने चंद्र को एक मृत गाय के सामने बैठा देखा तो उन लोगों को पूरी घटना समझते देर नहीं लगी और चंद्र ने उनके सामने खुद माफी मांगते हुए कहा कि यह उससे बहुत बड़ा पाप हो गया है |
इसके बाद गांव में एक पंचायत रखी गई और जीस गवाली की वो गे थी यानी कि चंद्र के पड़ोसी उसने पंचायत से न्याय की मांग की यहां पर पंचायत को फैसला करने में कुछ ज्यादा तकलीफ नहीं हुई क्योंकि चंद्र खुद यहां पर अपने आप को दोषी मानकर बैठा हुआ था | पंचायत में फैसला सुनाया कि जब तक चंद्र अपने इस पाप को धो नहीं लेता | तब तक वह इस गांव में वापस नहीं आ सकता इस पर चंद्र ने पंचायत से पूछा भी कि वह अपनी इस पाप को किस तरह से धो सकता है | तो पंचायत ने बताया कि तुम चार धाम की यात्रा करके आओ उसके बाद तुम्हारे पाप धूल जाएगा |
लेकिन अब भी चंद्र की आंखों के सामने गाय का वह तड़पता हुआ चेहरा घूम रहा था और उसे लग रहा था कि चार धाम जाने के बाद उसका यह पाप किस तरह धूल जाएगा | क्या उसे गाय की जिंदगी वापस आ जाएगी क्या उसको वह दर्द मेरी आंखों के सामने से हट जाएगा | लेकिन फिर भी उनकी बात मानते हुए वह चार धाम की यात्रा के लिए निकाल पड़ता है | यह उस समय की बात है जब कोई साधन या वाहन नहीं हुआ करते थे | तो इंसान को अपने पैरों से ही चलना पड़ता था या फिर घोड़ा गाड़ी या ऊंट गाड़ी पर जाना होता था | चंद्र की यात्रा बहुत लंबी होने वाली थी शायद उसे कई वर्ष लग जाते वापस लौट में |
लेकिन फिर भी चंद्र अपनी इस पाप को धोना चाहता था | लेकिन उसके मन में एक सवाल चल रहा था कि इस पाप का दोषी जितना वह है उससे ज्यादा दोषी वह ग्वाला है जो अपनी गायों को दूध निकालकर यूं ही दूसरों की फसल चरने के लिए छोड़ देता था | यह सिर्फ उसके मन का एक सवाल था लेकिन इस सवाल को वहां पर किसी से पूछ नहीं सकता था | जब वह अपने घर से चारधाम की यात्रा के लिए निकाल रहा था | तो उसकी पत्नी ने भी उसके साथ चलने के लिए आग्रह किया | लेकिन उसने अपनी पत्नी को वहीं पर अपने खेतों की देखभाल और अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए कहा और वह अकेला ही अपने पाप को धोने के लिए उसे गांव से निकाल पड़ता है | एक धाम से दूसरे धाम और दूसरे धाम से तीसरे धाम इस प्रकार चलते-चलते चंद्र को बहुत वक्त हो गया था कई साल बीत गए थे |
लेकिन चंद्र अब भी अपने आप को दोषी मान रहा रहा था | उसके मन से उस गाय का वह चेहरा हट ही नहीं
रहा था जब वह अपने तीसरे दाम की यात्रा पर जा रहा था तो उस यात्रा के बीच में एक जंगल पड़ता था और उस जंगल को पार करते हुए वह धाम था | जब चंद्र उस जंगल को पार कर रहा था तो उसे उस जंगल में एक भिक्षु की कुटिया दिखाई दी उसे बड़ा ही आश्चर्य हुआ क्योंकि वहां आसपास कोई भी और मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था | कई-कई मीलों तक किसी इंसान की कोई बस्ती वहां पर नहीं थी और इस मंगल के बीच में यह एक भिक्षु अकेला क्या कर रहा था | इससे चंद्र की जिज्ञासा और ज्यादा बढ़ गई और वह अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उस भिक्षु के पास उस कुटिया में पहुंच जाता है |
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जब चंद्र उस कुटिया में पहुंचा उस वक्त वह भिक्षु ध्यान में लीन था | लेकिन जैसे ही चंद्र ने उस कुटिया में प्रवेश किया वैसे ही भिक्षु अपने ध्यान से बाहर आ गए ध्यान से बाहर आने के बाद चंद्र ने उनसे पहला प्रश्न क्या किया जरा ध्यान से सुनिए | चंद्र ने पूछा महात्म आप इस जंगल में अकेले किस प्रकार रहते हैं यहां पर ना कोई इंसान है ना कोई बस्ती है यहां पर आप अकेले किस प्रकार वास कर लेते हैं | इस पर भिक्षु ने बड़े ही सहज भाव से उत्तर दिया कि इंसान को जीने के लिए सांसें और खाना चाहिए जो यहां पर भलीभांति मिल जाती हैं | सांसे यह पेड़ पौधे हमें देते हैं और खाना भी यह पेड़ पौधे हमें इस जंगल में दे देते हैं और जीने के लिए क्या चाहिए |
इस पर चंद्र ने पूछा कि महात्मा फिर भी इंसान को कोई तो चाहिए जिससे वह बात कर सके जिससे अपनी भावनाएं व्यक्त कर सके | आपके पास तो यहां कोई भी नहीं है इस पर भिक्षु ने जवाब दिया कि यह तुम्हें लगता है कि मेरे पास कोई भी नहीं है क्योंकि तुम्हारी आंखें सीमित चीजें ही देख पाती हैं | लेकिन मेरे पास वह भी है जो तुम्हारी आंखें नहीं देख पाती और जो कण कण में बसता है | इन बातों से चंद्र को एहसास होने लगा था कि यह कोई साधारण भिक्षु नहीं है इनकी समझ बहुत कह रही है और इनसे मुझे अपने सवालों के जवाब मिल सकते हैं | इसीलिए चंद्र ने उनको अपनी पूरी परिस्थिति बयां कर दी और सारी बात बताने के बाद चंद्र ने भिक्षु से पूछा कि महात्मा दो धाम की यात्रा तो मैं कर चुका हूं और यह यात्रा करने के बाद भी मेरे मन का बोझ हल्का नहीं हुआ है |
मुझे पता है कि मैं चार धाम की यात्रा भी कर लूंगा तो भी मेरे मन की परिस्थितियां ही रहेगी कृपया करके आप मेरा मार्गदर्शन करिए | मैं अपने इस पाप को किस तरह धो सकता हूं इस पाप से किस तरह मुक्ति पा सकता हूं | यह सुनकर वह भिक्षु जोर-जोर से हंसने लगता है | इस बात पर इतना जोर-जोर से ठहाके लगाकर हंसते हुए देखकर चंद्र ने भिक्षु से पूछता है कि महात्मा इसमें हंसने की क्या बात है | आप इतनी जोर-जोर से क्यों हंस रहे हैं इस पर वह भिक्षु कहता है कि तुम उस पाप को धोने की बात कर रहे हो जो तुमने किया ही नहीं है | तुम अंधकार में भटक गए हो जो तुमने किया वह कोई पाप नहीं था | वह तुम्हें लगता है कि पाप है लेकिन वास्तविकता में वह पाप नहीं है | अच्छा यह बताओ अगर तुम उस गाय को अपना पूरा खेत चरने के लिए छोड़ देते तो क्या वह सही होता जरा सोचो |
इस पर चंद्र कहता है कि नहीं महात्मा वह तो बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता | क्योंकि खेती करना तो मेरा पैसा है और अगर वह मेरे खेत की पूरी फसल खा जाती | तो मैं अपना परिवार किस प्रकार चलाता | अपना गुजारा बसेरा किस प्रकार करता | यह सुनकर उस भिक्षुक ने कहा तो यही बात तुम समझ नहीं पा रहे हो तुम्हारा सबसे बड़ा
कर्तव्य यही था कि तुम अपनी फसल की रक्षा करो | वही तुम्हारा सबसे बड़ा कर्म था और अपने कर्म को पूरा करने के लिए चाहे इंसान को कुछ भी करना पड़े उसे करना चाहिए और वही तुमने किया | एक उदाहरण देते हुए भिक्षु ने बताया कि जिस प्रकार श्री कृष्ण ने धर्म की रक्षा के लिए कौरवों से युद्ध करने के लिए अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और उससे युद्ध करने के लिए प्रेरित किया | क्योंकि वही उस वक्त की प्राथमिकता थी हमें यह जरूर देखना होगा कि हमारी प्राथमिकता क्या है और उसी प्राथमिकता के आधार पर हमें अपने कर्म का चुनाव करना होता है | इसके बाद भिक्षु ने चंद्र को समझाते हुए कहा कि जब तक तुम अपने आप को कर्ता समझते रहोगे यानी कि करने वाला तब तक तुम्हें दुख ही होता रहेगा | तुम्हारा मन अमीशा संताप झेल रहेगा क्योंकि तुम समझ
रहे हो कि तुम करने वाले हो तुम कर्ता हो और वही तुम्हारे दुख का कारण बन जाता है |
इस परिस्थिति में तुम्हें लग रहा है कि तुम्हारी वजह से वह गाय मारी गई क्योंकि तुम अपने आप को कर्ता समझ रहे हो और यही तुम्हारे दुख का कारण है | लेकिन जब तुम अपने आप को सिर्फ क्रिया समझोगे कर्म करने वाला समझोगे तब तुम्हें दुख नहीं होगा | क्योंकि वहां पर तुम कर्ता नहीं हो वहां पर तुम क्रिया हो करने वाला और रचने वाला तो कोई और है तुम इस नाटक में सिर्फ अभिनय कर रहे हो | अपना पात्र पूरा करो और यहां से चलते बनो अपने आप को इस नाटक का निर्देशक कभी मत समझना | क्योंकि निर्देशक कोई और है हम तो सिर्फ अभिनेता हैं | जो अपना अभिनय कर रहे हैं और इस अभिनय में जो पात्र हमें मिला है उसको भलीभांति पूरा करना हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है | तुम्हें पात्र मिला है एक किसान का इसीलिए तुम अच्छे से किसानी करोगे तो ही तुम्हारा निर्देशक यानी कि इस नाटक का निर्देशक खुश होगा | अगर तुम अपना अभिनय अच्छा नहीं करोगे तो उस
निर्देशक को कभी अच्छा नहीं लगेगा |
इसीलिए तुमने कुछ गलत नहीं किया तुम अपनी किसानी का पात्र बहुत अच्छे से निभा रहे थे | लेकिन वह कहते हैं ना कि संशय आत्मा विनाश अति यानी कि जिस मन में शक पैदा हो जाता है जिनस आत्मा में संशय पैदा हो जाता है वह अपने विनाश पर पहुंच जाती है वह खुद का विनाश कर लेती है और यही तुमने किया | तुम्हारे मन में उत्पन्न हो गई कि मैं किसानी करूं या मैं उस गाय के प्रति अपना कर्तव्य निभाऊंगा वह बहुत गहरा था | जरा ध्यान से सुनिए चंद्र ने पूछा कि महात्मा जो कर्म हम करते हैं हमें उसका फल किस प्रकार मिलता है | अगर मैंने कुछ गलत किया ही नहीं तो मैं यहां पर प्रायश्चित क्यों भोग रहा हूं और अगर मैंने अपना कर्तव्य निभाया अगर मैंने अपना कर्म पूरा किया है | तो मैं यहां पर दुख क्यों झेल रहा हूं मेरा मन इतने उत्पीडन से क्यों भरा हुआ है |
इस पर बौद्ध भिक्षु ने उसे समझाते हुए कहा कि जब तुम जमीन में कोई बीज डालते हो फसल उगाने के लिए तो तुम्हें कैसे पता चलता है कि तुम्हारी फसल कौन सा फल देगी यह सुनकर चंद्र ने जवाब दिया कि महात्म यह तो बीज डालने के कई महीनों बाद पता चलता है कि यह फसल कौन सा फल देने वाली है | जब तक हमें यह पता नहीं चलेगा कि यह बीज किस पेड का है तब तक हमें कैसे पता चल सकता है | कि यह पेड कौन सा फल देने वाला है यह सुनकर भिक्षु मुस्कुराते हुए कहने लगे कि जीस प्रकार बीज को जमीन में डालने पर हमें पता नहीं होता है कि वह कौन सा फल देगा |
उसी प्रकार कर्म करते हुए हमें यह पता नहीं होता कि इस कर्म का फल हमें किस प्रकार मिलेगा हो सकता है | उस कर्म का फल मिलने में कुछ देरी हो जाए लेकिन उस कर्म का फल मिलता जरूर है | लेकिन इंसान में इतना संयम नहीं रहता वह इतनी दूर दृष्टि नहीं रखता थे | वह इतना सोच ही नहीं पाता उसे तो अपने कर्मों का फल तत्क्षण चाहिए वह तो यह चाहता है कि जैसे ही मैं अपना कर्म करूं वैसे ही मुझे अपना फल मिल जाए | लेकिन ऐसा जिंदगी के किसी पैमाने पर नहीं होता है कोई भी विद्यार्थी जब मेहनत करता है |
तो कई साल बाद उसे उस विद्या का परिणाम मिलता है अगर कोई विद्यार्थी यह सोचे कि आज मैं यह पूरी पुस्तक पढ़ लेता हूं और कल ही मैं परीक्षा में बैठ जाऊं तो ऐसा हो नहीं सकता है उसे सालों साल ब्याज करना पड़ता है | और उस अभ्यास का फल उसे कब मिलेगा उसे यह पता भी नहीं होता है | लेकिन फिर भी इंसानियत समझ नहीं पाता और हमेशा अंधकार में भटकता रहता है | अपनी बात खत्म करते हुए भिक्षु ने कहा कि तुम अब अपने गांव लौट जाओ तुम्हें चार धाम की यात्रा करने की कोई जरूरत नहीं है |
तुम अच्छे से गांव में जाकर अपना कर्म करो और वहां पर अपने परिवार की देखभाल करो यही तुम्हारा अभिन्न है और यही तुम्हारा पात्र है | जो तुम्हें इस जीवन में निभाना है यह सुनकर चंद्र कहता है | लेकिन महात्मा पंचायत ने मुझे दोषी पाया है और जब तक मैं अपनी सजा पूरी नहीं कर लेता यानी कि अपना पाप नहीं धो लेता तब तक मैं कैसे वापस जा सकता हूं | यह तो धोखा होगा सल होगा जिसका परिणाम मुझे बाद में भोगना होगा | इस पर वह भिक्षु कहता है कि तुम एक बार अपने गांव में जाओ वहां की परिस्थिति बहुत कुछ बदल चुकी होगी वो गांव अब वैसा नहीं रहा होगा जैसा कि तुम छोड़कर आए थे |
क्योंकि तुम अपने कर्म अच्छे से कर रहे थे और उन कर्मों के परिणाम अब वहां पर तुम्हारे परिवार को मिलने शुरू भी हो चुके होंगे | जाओ इस चीज को अपनी आंखों से देखो और कर्मों के इस विधान को भली भांति समझो यह सुनकर चंद्र अपनी यात्रा के बीच से ही वापस अपने गांव में लौट आता है और गांव में लौटकर वह क्या देखता है कि उसका वह ग्वाला वाला पड़ोसी जो गायों को यूं ही छोड़ देता था | उसके पास अब एक भी गाय नहीं थी और दूसरी तरफ उसके परिवार के नाम पर गांव में एक गौशाला बनी हुई थी | जहां पर गांव के लोग अपनी श्रद्धा से कुछ ना कुछ गायों को खाने के लिए चारा भेंट में देते रहते यह दृश्य देखकर चंद्र आश्चर्य चकित रह गया |
उसे समझ नहीं आया कि यह किस प्रकार हुआ जब उसने लोगों से पूछा कि यह किस प्रकार हुआ | तो लोगों ने उसे बताया कि तुम्हारे जाने के बाद इस ग्वाले ने अपनी गाय रात में छोड़ना बंद नहीं किया और उसकी गाय दूसरों के खेतों में भी फसलों को नुकसान पहुंचाती रहती थी | जिससे सभी गांव वाले बहुत परेशान हो गए और आखिरकार एक दिन पंचायत हुई और पंचायत ने यह निर्णय किया कि चंद्र से कुछ गलत नहीं हुआ था | वह अपनी फसल को बचाने के लिए अनजाने में ही उससे यह गलती हो गई थी | लेकिन यह गलती नहीं मानी जा सकती और इसीलिए जो गाय उस ग्वाले ने छोड़ रखी थी |
उन गायों को पकड़कर एक गौशाला बनाई गई और वह गौशाला चंद्र के परिवार के नाम कर दी गई | क्योंकि पंचायत को एहसास हुआ कि चंद्र को दोषी मानकर उनसे बहुत बड़ी गलती हुई थी | इसीलिए अपनी गलती को सुधारने के लिए उन्होंने वह गौशाला चंद्र के परिवार के नाम कर दी यह दृश्य देखकर चंद्र की आंखें खुल गई | उसे उस भिक्षु की वह बात याद आ गई कि जब हम जमीन में बीज को डालते हैं | तब हमें यह पता नहीं होता कि वह बीज क्या फल देगा | लेकिन जिस दिन वह फल देता है उस दिन हम पता चलता है कि हमारा वह कर्म कितना सार्थक था | तो दोस्तों कैसी लगी यह कहानी आपको कमेंट सेक्शन में जरूर बताना और अच्छी लगी होगी तो मिलते हैं अगली किसी ऐसी कहानी में तब तक के लिए अपना ख्याल रखें धन्यवाद ! और नमो बुद्धाय !
निष्कर्ष
"कर्मो का फल एक दिन जरूर मिलता है" एक बौद्ध कहानी है जो लॉ ऑफ कर्मा पर आधारित है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारे द्वारा किए गए कर्म, चाहे वे अच्छे हों या बुरे, उनका परिणाम हमें एक दिन जरूर मिलता है। गौतम बुद्ध के जीवन से प्रेरित यह कहानी हमें नैतिकता और धर्म के मार्ग पर चलने का महत्व सिखाती है।
FAQs
1. कर्मो का फल क्या है?
कर्मो का फल एक ऐसा सिद्धांत है जो कहता है कि व्यक्ति के द्वारा किए गए कर्मों का परिणाम उसे जीवन में वापस मिलता है। यदि व्यक्ति अच्छे कर्म करता है, तो उसे अच्छा परिणाम मिलेगा, और यदि बुरे कर्म करता है, तो उसे बुरा परिणाम मिलेगा।
2. गौतम बुद्ध ने कर्म के सिद्धांत पर क्या कहा है?
गौतम बुद्ध ने कर्म के सिद्धांत पर कहा है कि हमारा हर कर्म हमारे भविष्य को आकार देता है। उन्होंने यह भी कहा कि अविद्या (अज्ञानता) के कारण मनुष्य गलत कर्म करते हैं, और ध्यान व समझ के माध्यम से इसे समझकर सही पथ पर चल सकते हैं।
3. कर्म के फल का अनुभव कब होता है?
कर्म के फल का अनुभव जीवन में किसी भी समय हो सकता है। यह तत्काल भी हो सकता है या भविष्य में किसी भी समय हो सकता है, यहां तक कि अगले जन्म में भी।
4. कर्मो का फल कैसे समझा जा सकता है?
कर्मो का फल समझने के लिए, व्यक्ति को अपने आचरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है और यह समझना होगा कि हमारे कर्म ही हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं। आत्म-जागरूकता और ध्यान इसमें मदद कर सकते हैं।
5. क्या कर्म के सिद्धांत को विज्ञान ने स्वीकार किया है?
कर्म का सिद्धांत मुख्य रूप से धार्मिक और दार्शनिक मान्यताओं पर आधारित है। विज्ञान में इसे सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया गया है, क्योंकि यह प्रमाणित या परीक्षण योग्य नहीं है। हालांकि, व्यक्तिगत आचरण और परिणामों के बीच संबंधों को समझने में यह सिद्धांत महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है।
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कर्म का सिद्धांत, गौतम बुद्ध, बौद्ध कहानियाँ, धार्मिक शिक्षाएँ, नैतिकता, धर्म और दर्शन, आत्म-सुधार, जीवन दर्शन
